उत्तराखंड

स्थानीयता केंद्रित,समावेशी तथा धरातल आधारित हो पाठ्यचर्या – डॉ० अंकित जोशी


देहरादून। वर्तमान में राज्य पाठ्यचर्या की रूपरेखा के विकास का कार्य एससीईआरटी द्वारा किया जा रहा है तथा माध्यमिक स्तर की पाठ्यचर्या की रूपरेखा का ड्राफ्ट सुझाव हेतू पब्लिक डोमेन में डाला गया है । डॉ० अंकित जोशी द्वारा इसी क्रम में अपर निदेशक एससीईआरटी को राज्य पाठ्यचर्या रूपरेखा (माध्यमिक शिक्षा) को अधिक प्रभावी बनाने हेतु कुछ महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर सुझाव दिये गये हैं । 

 

1. उत्तराखण्ड विद्यालयी शिक्षा की पाठ्यचर्या की रूपरेखा में अपेक्षित था कि एक पूरा पाठ उत्तराखण्ड विद्यालयी माध्यमिक शिक्षा के वर्तमान विकसित ढांचे के शोध पर आधारित होगा जैसे कि वर्तमान उत्तराखण्ड विद्यालयी माध्यमिक शिक्षा का विकास तथा धरातल पर गतिमान कार्यक्रमों के उद्देश्य, प्रभावों तथा चुनौतियों का अध्ययन तथा उत्तराखण्ड के विगत कुछ वर्षों के विद्यालयी शिक्षा के सूचकांकों जैसे मुख्य रूप से ड्राप आउट दर, एन0ई0आर0 आदि सम्मिलित हों। इसके अतिरिक्त माध्यमिक स्तर पर संचालित किये जा रहे राजकीय विद्यालय, अटल उत्कृष्ट विद्यालय तथा क्लस्टर विद्यालयों तथा शिक्षक-शिक्षा संवर्ग के अभाव के संदर्भ में भावी रणनीति पर चर्चा अपेक्षित है। वास्तव में यही वे संस्थान हैं जहां प्रभावी पाठ्यचर्या निर्माण तथा क्रियान्वयन होता है।

2. स्थानीयकरण और संदर्भानुसार अनुकूलन (।कंचजंजपवद) – उत्तराखण्ड माध्यमिक शिक्षा के लिए राज्य पाठ्यचर्या रूपरेखा राष्ट्रीय निर्देशों से अत्यधिक प्रभावित प्रतीत होती है। राज्य की अनूठी सांस्कृतिक, भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक संदर्भ का अनुकूलन अपर्याप्त प्रतीत होता है। इस अनुकूलन की कमी से एक ऐसी पाठ्यचर्या विकसित हो सकती है जो उत्तराखण्ड के छात्रों के लिए पूरी तरह से प्रासंगिक या आकर्षक नहीं हो सकेगी, जिससे क्षेत्र के विशिष्ट शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न हो सकती है। वर्तमान में उत्तराखण्ड विद्यालयी शिक्षा में एन0सी0ई0आर0टी0 पाठ्यचर्या लागू है, आदर्श स्थिति में यदि देखा जाए तो राज्य के सांस्कृतिक, भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक संदर्भों में यहां के विद्यालयों में स्थानीय कारकों पर आधारित पाठ्यचर्या ही विकसित करा लागू होनी चाहिए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 तथा पाठ्यचर्या की रूपरेखा के विकास के मानकों में भी स्थानीयता आधारित पाठयचर्या ही सर्वोत्तम मानी गई है।
 
3. बहुभाषी शिक्षा पर अधिक ध्यान अपेक्षित – जबकि एस0सी0एफ0 बहुभाषावाद के महत्व को स्वीकार करता है, पूरे राज्य में बहुभाषी शिक्षा को प्रभावी ढंग से बढ़ावा देने और लागू करने के लिए व्यापक रणनीति की आवश्यकता है। उत्तराखण्ड के विविध भाषाई परिदृश्य, जिसमें कई स्थानीय बोलियां शामिल हैं, को समर्थन देने के लिए एक अधिक मजबूत पाठ्यचर्या रूपरेखा आवश्यक है जो राज्य की भाषाई विविधता को दर्शाता हो।

 

4. स्थानीय ज्ञान प्रणालियों के समावेश की आवश्यकता- राज्य पाठ्यचर्या रूपरेखा का वर्तमान ड्राफ्ट स्थानीय ज्ञान प्रणालियों, जिनमें पारंपरिक प्रथाएं, स्थानीय इतिहास और स्वदेशी ज्ञान शामिल हैं, को पर्याप्त रूप से शामिल नहीं करता है। इस कमी के कारण पाठ्यक्रम और छात्रों के जीवन अनुभवों के बीच एक असंगति हो सकती है, जिससे शिक्षा उनके लिए कम प्रासंगिक और अर्थपूर्ण हो सकती है।

 

5. समय और एकीकृत शिक्षा को लागू करने में चुनौतियां- हालांकि एस0सी0एफ0 ड्राफ्ट समग्र और एकीकृत शिक्षा की आवश्यकता पर जोर देता है, इस दृष्टिकोण को प्रभावी ढंग से लागू करने में व्यावहारिक चुनौतियां हैं। इनमें अपर्याप्त शिक्षक प्रशिक्षण, संसाधनों की कमी शामिल है, जो इस एकीकृत दृष्टिकोण का समर्थन करने में सक्षम नहीं हो सकता है।
6. मूल्यांकन और आकलन की समस्याएं- एस0सी0एफ0 का मूल्यांकन दृष्टिकोण मुख्य रूप से पारंपरिक बना हुआ है, जो रटने पर जोर देता है, जबकि इसका फोकस तर्कपूर्ण सोच (ब्तपजपबंस ज्ीपदापदह) और समस्या समाधान कौशल (च्तवइसमउ ैवसअपदह ैापसस)  पर होना चाहिए। यह दृष्टिकोण व्यापक शैक्षिक लक्ष्यों के साथ मेल नहीं खाता है जो उच्च स्तरीय सोच कौशल और समग्र विकास को बढ़ावा देना चाहते हैं।
7. जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन में चुनौतियां- उत्तराखण्ड के दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रों में एस0सी0एफ0 के व्यावहारिक कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण बाधाएं हैं। यह ड्राफ्ट इन क्षेत्रों में स्कूलों के सामने आने वाली संरचना और संसाधन सीमाओं को पूरी तरह से ध्यान में नहीं रखता है, जैसे कि शिक्षकों की अपर्याप्त उपलब्धता, इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी और आवश्यक शिक्षण सामग्री की कमी। ये चुनौतियां गुणवत्तायुक्त शिक्षा की पहुंच में असंगतियों का कारण बन सकती हैं और एस0सी0एफ0 के उद्देश्यों की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न हो सकती हैं।
8. शिक्षक प्रशिक्षण और समर्थन हेतु ठोस रणनीति- एस0सी0एफ0 शिक्षक प्रशिक्षण की आवश्यकता पर जोर देता है, लेकिन वर्तमान ढांचा सतत पेशेवर विकास के लिए एक मजबूत प्रणाली प्रदान नहीं करता है। शिक्षक अक्सर बहुविषयक शिक्षा, समग्र विकास और स्थानीय ज्ञान प्रणालियों के एकीकरण के क्षेत्रों में पाठ्यक्रम को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए आवश्यक कौशल और संसाधनों की कमी महसूस करते हैं। उत्तराखण्ड में वर्तमान में शिक्षक-शिक्षा के संस्थानों एस0सी0ई0आर0टी और डायटों के भारत सरकार के मानकों पर आधारित 2013 के ढ़ांचे के लागू न होने के कारण राज्य में शिक्षकों के प्रशिक्षणों में गुणवत्ता का अभाव प्रतीत होता है। अतः शिक्षकों के प्रशिक्षण अथवा सतत पेशेवर विकास हेतु व्यापक तथा गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है।
9. समावेशन और समानता के मुद्दे- जबकि एस0सी0एफ0 शैक्षिक समानताओं को संबोधित करने का लक्ष्य रखता है, यह हाशिए पर रहने वाले समुदायों जैसे कि लड़कियां, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को प्रभावी रूप से शामिल करने में विफल प्रतीत होता है। ढांचे में उन सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक बाधाओं को दूर करने के लिए विस्तृत रणनीतियों की कमी है जो इन समूहों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँचाने में बाधा उत्पन्न करती हैं।
10. प्रौद्योगिकी के एकीकरण पर सीमित ध्यान- एस0सी0एफ0 शैक्षिक प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी के एकीकरण को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं करता है। एक बढ़ती हुई डिजिटल दुनिया में, ढांचे को स्पष्ट मार्गदर्शन प्रदान करना चाहिए कि कैसे शिक्षण और सीखने में डिजिटल उपकरणों और संसाधनों को शामिल किया जा सकता है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां पारंपरिक शैक्षिक विधियां कम प्रभावी हैं।
11. निगरानी और मूल्यांकन तंत्र- एस0सी0एफ0 में निगरानी और मूल्यांकन तंत्र पर जोर नहीं है। पाठ्यक्रम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए यह आवश्यक है कि शैक्षिक लक्ष्यों को पूरा किया जा रहा है या नहीं, और सुधार के लिए क्षेत्रों की पहचान करने के लिए सतत मूल्यांकन किया जाए। ऐसे तंत्रों की अनुपस्थिति शैक्षिक गुणवत्ता में दोष उत्पन्न कर सकती है और एस0सी0एफ0 के उद्देश्यों की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न हो सकती है।



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